Wednesday, March 14, 2012

चाँद का कुर्ता


                                छायांकन  : http://anjalinayar09.blogspot.in/2011/07/chand-ka-kurta.html


हठ कर बैठा चाँद एक दिन माँ से बोला,
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला.
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ.
आसमान का सफ़र और ये मौसम है जाड़े का,
अगर न हो तो, ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का.
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने, "अरे सलोने,
कुशल करे भगवन, लगे न तुझको जादो टोने.
जाड़े की तो बात ठीक है पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं, तुझको देखा करती हूँ.
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा.
घटता-बढ़ता और किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की आँखों को तू, दिखलायी पड़ता है.
अब तू ही तो बता नाप तेरा किस रोज़ लिवायें?
सीं दें एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आये.

-रामधारी सिंह दिनकर



On the request of some of my most special friends because (alas!) they hadn't ever heard of this masterpiece.

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